क्यों हम वही गलती बार-बार दोहराते हैं? | Emotional Psychology Explained in Hindi
"क्यों हम बार-बार वही गलती दोहराते हैं? जानिए emotional patterns, psychology और उन hidden reasons को जो हमें दोबारा उसी रास्ते पर ले जाते हैं।"
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| क्यों हम वही गलती बार-बार दोहराते हैं? | Emotional Psychology Explained |
ज़िंदगी में कुछ सवाल ऐसे होते हैं जो हम खुद से बार-बार पूछते हैं। और उनमें से एक सवाल हर इंसान के दिल के कोने में छिपा रहता है—
“मैं बार-बार वही गलती क्यों दोहरा देता हूँ?”
“मैं सीख क्यों नहीं पाता?”
“मैं खुद को रोक क्यों नहीं पाता?”
हम सोचते हैं कि एक बार दर्द मिला, एक बार ठोकर लगी, एक बार टूट गए…
तो अगली बार हम समझदार हो जाएँगे।
लेकिन ऐसा होता नहीं है।
कई बार हम वही रास्ता दोबारा चुन लेते हैं…
वही इंसान पर भरोसा कर लेते हैं…
वही उम्मीदें फिर से लगा लेते हैं…
और वही गलती फिर से कर बैठते हैं।
आख़िर क्यों?
आज हम इसी बात को दिल की गहराई और psychology दोनों की रोशनी से समझेंगे—
बिना खुद को दोष दिए…
सिर्फ सच को महसूस करते हुए।
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✏️ 1. क्योंकि दिल अक्सर वही चाहता है जो दिमाग से गलत लगता है
दिमाग कहता है—
“यह मत करो, फिर चोट लगेगी।”
दिल कहता है—
“शायद इस बार सब ठीक हो जाए।”
हमारी समस्या गलती नहीं…
हमारी समस्या हमारी उम्मीद है।
दिल हमेशा एक “better ending” की तलाश में रहता है।
उसे पुराना दर्द याद होता है,
लेकिन फिर भी वो एक नई शुरुआत चाहता है।
इसलिए हम उसी रास्ते पर लौट आते हैं—
जहाँ हम पहले गिर चुके होते हैं।
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✏️ 2. हम दिल की पुकार को दिमाग की सलाह से ज़्यादा मानते हैं
Emotionally sensitive लोग एक बात कभी नहीं मानते:
“जो चीज़ दर्द देती है, उससे दूर रहो।”
नहीं।
वो फिर से कोशिश करते हैं,
फिर से विश्वास करते हैं,
फिर से उम्मीद बाँधते हैं…
क्योंकि उनका दिल उनसे कहता है कि शायद इस बार नतीजा अलग हो।
यही sensitivity गलती को repeat करवाती है।
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✏️ 3. क्योंकि पुरानी आदतें नए फैसलों पर भारी पड़ जाती हैं
Psychology कहती है:
दिमाग वही करता है जो उसे familiar लगे।
गलत भी हो…
लेकिन अगर दिमाग उसे habit मान चुका है,
तो वो उसी तरफ जाएगा।
जैसे:
- बार-बार toxic लोगों की तरफ जाना
- बार-बार “हाँ” कहना जब “ना” कहना चाहिए
- बार-बार खुद को blame करना
- बार-बार खुद को prove करने की कोशिश
- बार-बार self-respect compromise करना
हम जानते हैं कि ये गलत है—
लेकिन दिमाग familiarity को comfort zone समझ लेता है।
और comfort zone से बाहर निकलना उसे खतरा लगता है।
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✏️ 4. क्योंकि हम ‘सीखने’ से ज़्यादा ‘फील’ करते हैं
हर इंसान के दो हिस्से होते हैं—
एक जो समझता है।
एक जो महसूस करता है।
बहुत बार गलती को हमारा दिमाग समझ लेता है,
लेकिन दिल वही महसूस करता रहता है जो पहले करता था।
इसलिए सीख देर से लगती है।
या लगती ही नहीं।
क्योंकि हमारी भावनाएँ learning process से तेज़ चलती हैं।
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✏️ 5. क्योंकि हम अपनी worth को कम समझते हैं
बार-बार वही गलती repeat होने का एक गहरा कारण है—
हम खुद को कम आंकते हैं।
हम सोचते हैं:
“शायद मैं इससे बेहतर deserve ही नहीं करता…”
“शायद गलती मेरी ही रही होगी…”
“शायद मुझे और कोशिश करनी चाहिए…”
और इसी self-doubt में हम उसी गलती की तरफ खिंचे चले जाते हैं।
खुद को कम समझने की आदत—
हमें गलत रास्तों पर बार-बार ले जाती है।
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✏️ 6. क्योंकि हम closure की तलाश में होते हैं
जब कोई रिश्ता अचानक खत्म हो जाए…
जब कोई इंसान बिना वजह चला जाए…
या जब कोई चर्चा अधूरी रह जाए—
तो हमारा दिल closure खोजने के लिए पुरानी गलती की तरफ लौट जाता है।
“शायद इस बार समझ आजाए…”
“शायद इस बार बात साफ हो जाए…”
“शायद इस बार वो चले न जाए…”
Closure की भूख इतनी ज़ोरदार होती है
कि हम सारी सीखों को भूलकर वही गलती दोहराते हैं।
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✏️ 7. क्योंकि हम सोचते हैं कि हम किसी को बदल देंगे
यह एक सबसे बड़ा भावनात्मक भ्रम है।
हम सोचते हैं:
“इस बार वो समझ जाएगा।”
“इस बार मैं और अच्छा करूँगा।”
“इस बार सब अलग होगा।”
लेकिन इंसान नहीं बदलता—
वो सिर्फ अपना समय बदलता है।
और इसी उम्मीद में हम खुद को बार-बार उसी जाल में डाल देते हैं।
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✏️ 8. क्योंकि मन चाहता है कि दर्द का एक खुशअंत हो
सबसे सच बात यह है—
हमारी गलती हमारी कमजोरी नहीं होती,
हमारी गलती हमारी चाहत होती है।
हम चाहते हैं कि वही कहानी
जिसने हमें कभी तोड़ा था—
वही हमें एक दिन ठीक कर दे।
वही इंसान
जिसने हमें once hurt किया—
एक दिन हमें heal कर दे।
यह दिल का जादू है…
जो दिमाग को बार-बार हरा देता है।
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✏️ 9. क्योंकि छोड़ना सीखना सबसे मुश्किल काम है
जिस चीज़ से हम emotionally जुड़ जाते हैं,
उसे छोड़ना तर्क से नहीं…
दर्द से होता है।
और pain face करने से आसान होता है—
उसी गलती की तरफ भाग जाना।
इसलिए लोग कहते हैं:
हम वही गलती दोहराते हैंजिसे छोड़ने का साहस हमारे अंदर नहीं होता।
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✏️ 10. अब सवाल—क्या हम गलती को रोक सकते हैं?
हाँ, लेकिन सीख तभी लगेगी जब:
✔ आप खुद को blame करना बंद करेंगे
क्योंकि blame सीख में बदलता नहीं—
blame सिर्फ guilt बनाता है।
✔ आप “क्यों हुआ” से ज़्यादा “क्या सीखना है” पर फोकस करेंगे
सवाल बदलते ही नज़रिया बदल जाता है।
✔ आप अपनी worth समझेंगे
आप गलत रास्तों पर इसलिए जाते हैं
क्योंकि आपको लगता है आप बेहतर deserve नहीं करते।
✔ आप खुद को repeat करते हुए पकड़ेंगे
हर इंसान के अंदर एक moment आता है
जहाँ वो कह सकता है—
“बस, अब और नहीं।”
✔ आप खुद को वही softness दें जो दूसरों को देते हैं
आप दूसरों को दोबारा मौका दे देते हो…
अब अपने आप को भी वही देना सीखो—
लेकिन गलतियां repeat करने के लिए नहीं,
बल्कि उनसे ऊपर उठने के लिए।
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⭐ अंत में एक बात…
हम गलतियाँ इसलिए नहीं दोहराते क्योंकि हम मूर्ख हैं।
हम गलतियाँ इसलिए दोहराते हैं क्योंकि हम इंसान हैं।
हमारा दिल चाहता है कि चीज़ें सही हों।
हमारा दिमाग चाहता है कि हम सुरक्षित रहें।
और हमारी आत्मा चाहती है कि हम सीखें।
गलती हमें गिराती नहीं—गलती हमें समझाती है।
और जब तक हम सीख नहीं लेते,
ज़िंदगी हमें वही lesson बार-बार सामने लाती रहती है।
एक दिन वही lesson
हमारी सबसे बड़ी strength बन जाता है।
— The End —
